Hoshangabad Science Teaching Program
By Anil Sadgopal 17th October 2021 1972 में मित्र मंडल केंद्र रसूलिया और किशोर भारती के संयुक्त प्रयास से मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के सोलह सरकारी उत्तर-प्राथमिक (मिडिल) स्कूलों में विज्ञान शिक्षण को गतिविधि-आधारित बनाने तथा स्थानीय परिवेश से जोड़ने का प्रयोग शुरू हुआ। अगले पांच वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ विज्ञान शिक्षकों और उनके शोध विद्यार्थियों की पूरी एक टीम एवं टाटा आधारभूत शोध संस्थान (टाटा इंस्टिच्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च), मुंबई, और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी, कानपुर, जैसी अन्य संस्थाओं के वैज्ञानिकों की मदद से रूढ़िगत विज्ञान शिक्षण को बदलने की एक साहसिक प्रक्रिया शुरू हुई। इस प्रक्रिया में स्कूली शिक्षकों एवं बच्चों की भागीदारी बढ़ाने के ऐतिहासिक अनुभव प्राप्त किए गए। इस अनुभव को स्वयंसेवी मंच से सरकारी शिक्षा तंत्र में हस्तक्षेप के प्रयोग के रूप में व्यापक मान्यता मिली। 1978 में इन दोनों संस्थाओं ने जिले के सभी 220 उत्तर-प्राथमिक स्कूलों में विज्ञान शिक्षण के इस नए स्वरूप के अनुसार तंत्रगत ढांचे और प्रक्रियाएं खड़ा करने का काम भी किया। इस जिला स्तरीय प्रसार के कुछ महीने पहले पांच साल के अनुभव पर एक विहंगम दृष्टि डालने वाला यह विवरण ‘होविशिका’ (होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम) की ओर से किशोर भारती की चार-सदस्यीय टीम द्वारा दर्ज किया गया था। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में काम कर रही मित्र मंडल केंद्र रसूलिया एवं किशोर भारती नामक दो स्वैच्छिक संस्थाओं ने विगत पांच वर्षों में जिले के सोलह ग्रामीण मिडिल स्कूलों में विज्ञान शिक्षण के क्षेत्र में पथ प्रदर्शक प्रयोग किए हैं। इन प्रयोगों में उन स्कूलों के शिक्षक और बच्चे सहभागी बने। इस पहलकदमी की आधारशिला गतिविधि-आधारित शिक्षण है। इसमें बच्चे निष्क्रिय होकर केवल व्याख्यान सुनते रहने के बजाए सक्रिय रूप से ज्ञान के सृजन में हिस्सेदारी करते हैं। लेकिन बहुत जल्द ही हमने अनुभव किया कि यदि इस शैक्षिक नवाचार को करते हुए सामाजिक-आर्थिक कारकों को ध्यान में नहीं रखा गया तो ये विचार आकर्षक मुहावरे मात्र बनकर रह जाएंगे।